इस ब्लॉग पोस्ट में हम आश्रू गैस तथा आश्रू गैस गन के इतिहास, किस्मे और उससे सम्बंधित जानकारी प्राप्त करेंगे ! जैसे की हम जानते है की क्राउड कण्ट्रोल के समय आश्रू गैस एक कारगर हथियार की तरह कार्य करता है और इसके इस्तेमाल से पुलिस क्राउड जो की अन कण्ट्रोल होगया है उससे भगाने में इस्तेमाल करती है ! आश्रू गैस आश्रू गैस गन का इतिहार तथा किस्मे इसप्रकार से है :
टियर स्मोक गैस- इतिहास, किस्में, गन और प्रयोग करना परिचय:-(टीएसयू) केमिकल एजेन्ट का परिचय और अश्रुगैस का इस्तेमाला अश्रुगैस बनानेवाले प्रथम वैज्ञानिक फेडरल ब्रेकर भट्टेवार थे। अश्रुगैस के इस्तेमाल. जानी नुकसान पहुँचाए बिना भीड़ को तितर-बितर करने का सबसे कारगर और आसान तरीका है। इसलिए विश्वभर के करीब 30 देश भीड़ नियंत्रण तथा साम्प्रदायिक दंगों के विरुद्ध इसे प्रयोग कर रहे हैं। इसके केमिकल का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांस ने सन् 1832 ई. में चोर-उच्चकों के विरुद्ध किया। उस समय यह तरल पदार्थ के रूप में था। इथाईल ब्रोमोएसीटेट (तरल) का प्रयोग सही होने के कारण सन् 1914 में सर्वप्रथम प्रथम विश्व युद्ध के दौरान क्लोरिन साइनाइड के रूप में किया गया। भारत में सर्वप्रथम सन् 1984 ई० में केमिकल एजेन्ट का प्रयोग पाटलीपुत्र, पटना बिहार) जंग-ए-आजादी में कारगर सिद्ध हुआ।
किस्में - केमिकल एजेन्ट चार प्रकार के होते हैं -
- 1. सी०एम०(क्लोरो एसीटोफोनोन)- सन् 199 में जर्मन के गर्यो नामक वैज्ञानिक ने प्रयोग के बाद इसेबनाया। इस अम्युनिशन को सी०एम०पी० के नाम से भी जाना जाता है।
- 2. सी०एस०- अमेरिका के वैज्ञानिक कारशन और स्ट्राधन ने इसे बनाया । दोनो वैज्ञानिकों के नाम को बरकरार रखने के लिए इसका नाम सी०एस० दिया गया है। सी०एस० सर्वप्रथम सन् 1961 में इंग्लैण्ड में प्रयोग किया गया। यह अभ्युनिशन सी०एम० से 10 गुण प्रभावशाली है।
- 3. डी0एन0 - सन् 1917 में अमेरिका के वैज्ञानिक मेजर एडम ने इसे बनाया। इसका धुओं पीला होता है और इसका दिमागी असर बहुत हानिकारक होने के कारण भारत में इसका इस्तेमाल नहीं होता है।
- 4. सीमा0- केमिकल एजेन्ट में सीआर0 सबसे ज्यादा प्रभावशाली है। इसका धुओं सबसे ज्यादा असरदार होता है। सी0एम0 से 100 प्रतिशत तथा सी०एस० से 30 प्रतिशत ज्यादा इसका धुओं असरदार होता है। यह सबसे सुरक्षित तथा इस्तेमाल करना आसान है। इसको सन् 1963 ई० में इंग्लैण्ड ने बनाया था। इसका असर अस्थाई है। पहले यह केमिकल यू०एस० से मैंगवाया जाता था। 12 मई, 1976 ई० में भारत सरकार ने इस केमिकल एजेन्ट को बी०एस०एफ० ऐकेडमी टेक्कनपुर (म०प्र०) में इसे बनाना शुरू किया। जिससे देश को अरबों रुपया विदेशी मुद्रा की बचत होती है।
2 गैसगन का वजन -6 पौण्ड 10 औंस या 372 किग्रा०
3. गैसगन की लम्बाई -28 इंच या 750 एम.एम.
4. बैरल की लम्बाई -12 इंच
5. बट की लम्बाई :16 इंच
6. कैलिवर: 1.5 इंच
7. कारगर रेंज: 50 गज से 200 गज
गन को दो भागों में खोला जाता है
(क) बैरल ग्रुप- बैरल ग्रुप के हिस्सों-पुर्जो के नाम- फोरसाइट, बैकसाइट, साइट पिन, बैरल बॉडी ज्वाइंट स्क्रू, बैरल कैच और बैरल कैच- स्क्रू ।
(ख) बट ग्रुप- बट ग्रुप के हिस्सों-पुर्जो नाम- बट प्लेट, बट प्लेट, स्क्रू टो एण्ड हिल बट
,बॉडी के पुर्जो का नाम - बॉडी, बॉडी कवर, पिस्टन ग्रिप, फायरिंग पिन, फायरिंग पिन स्प्रिंग, ट्रिगर, ट्रिगर गार्ड, बैक साइट, बैकसाइट बेड और बट बैरल ज्वाइंट स्क्रू
नोट :- गैसगन के द्वारा अलग-अलग रेंज पर दंगा नियंत्रण के लिए सेल फायर किया जाता है।
इसके साथ ही आश्रू गैस और गैस गन का इतिहास और परिचय से सम्बंधित IWT का पाठ समाप्त हुवा !उम्मीद है की आपलोगों के ए पोस्ट पसंद आएगी ! इस ब्लॉग को सब्सक्राइब या फेसबुक पेज को लाइक करके हमलोगों को प्रोतोसाहित करे!
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