Search

25 December 2021

राकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड लॉचर || RPG-7

हमने अपने वेपन के पिछले ब्लॉग पोस्ट में M-16 असाल्ट राइफल के बारे में हिंदी में जानकारी प्राप्त की थी और अब इस नई ब्लॉग पोस्ट में हम एंटी टैंक राकेट लांचर RPG-7 के बारे में हिंदी में जानकारी प्राप्त करेंगे !
1. RPG-7 की इंट्रोडक्शन 
RPG-7
RPG-7
RPG-7 का पहचान ही एक पावरफुल , सस्ता और बनावट में साधारण तथा काम में बहुत ही घातक किस्म का हथियार है ! दुसरे सब्दो में बिना किसी  झिझक का हम कह सकते है की अपने प्रवेश साल 1961 से लेकर  अभी तक RPG-7 बहुत ही पसंद की जाने वाली एंटी टैंक राकेट लांचर है ! अभी तक एक अनुमान के अनुसार तक़रीबन 90 लाख यूनिट्स RPG-7 बनाया जा चूका है जो की विश्व के 40 देशो के मिलिट्री के द्वारा प्रयोग किया जा रहा है और आतंकवादी संगठन  भी इसे इस्तेमाल करते है !

2. RPG-7 का पूरा नाम 

RPG-7 जिसका पूरा नाम रुस्सियन रुचनोय प्रोतिवोतानकोवी ग्रानातोम्योट(Russian Ruchnoy Protivotankovvy Granatomyot) ओर हैण्ड हेल्ड एंटी टैंक ग्रेनेड लांचर (hand-held anti-tank grenade launcher )जो की फौजी बोल चाल के भाषा में राकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड(Rocket Propelled Grenade) या RPG कहते है! RPG-7 जोकि 1949 में बनी RPG-2 का एडवांस अवतरण है RPG-2  का निर्माण और इस्तेमाल वर्ड वॉर-2 (World War II) जिसे जर्मन और अमेरिकन कंपनियो ने बनाया था ! और उसी का एडवांस वर्शन RPG-7 है जिसमे की रेंज और अर्मोर पेनेट्राशन में  काफी बढ़ोतरी  किया गया !
3. RPG-7 का इस्तेमाल 
RPG-7 एक पुनःइस्तेमाल सिंगल शॉट स्मूथ बोर ट्यूब  जिसका व्यास 40 मिलीमीटर्स है !इस लांचर को फायर के दौरान रेकोइल नहीं होता है और कंधे पर रख कर  मजल के द्वारा लोड कर के फायर किया जाता है ! इस लांचर के द्वारा बहुत तरह के राकेट को फायर किया जा सकता है ! इसके साथ ऑप्टिकल और आयरन साईट आता है जिसके इस्तेमाल से  रात के भी फायर किया जा सकता है !

4. RPG-7 की बनावट 

इस लांचर के बैरल का मिडिल भाग में लकड़ी लगा रहता है जिससे फायरर को फायर के दौरान उत्पन्न होने वाले गर्मी से बचाना  है और इसके बीच में दो हैंडल्स लगे और ट्रिगर फिट किया होता है  ! 

इस बहुयामी हथियार का दूसरा फायदा है छोटा होने के साथ  बैक ब्लास्ट कम होने  के कारन किसी बिल्डिंग के अन्दर से भी फायर कर सकते है ! इस वेपनके फायर के दौरन फ़्लैश , आवाज तथा धुवा ज्यादा पैदा होता है जिससे फायरर का लोकेशन दूर से मालूम पड़ जाता है !

फायर करने के बाद राकेट 10 मीटर की दुरी ट्रेवल करते ही इंटरनल मोटर ईगनाईट हो जाता है और चार स्टेबिलाइजेशन फिन फोल्ड बहार आ जाता है जिससे की वेपन को मैक्सिमम मजल वेलोसिटी(muzzle velocity ) 300 मीटर पर  सेकंड का मिल जाता है !

साधारणतः RPG-7 को एक फायरर फायर करता है तथा  एक हेल्पर एक्स्ट्रा राउंड लेकर उसके साथ रहता है जो फायर के दौरान फायरर के ऊपर होने वाले किसी भी हमले से बचाता है !

5. RPG-7 की रेंज 

RPG-7 जिसका मक्सिम्म रेंज 900 मीटर है इतनी दुरी तय करके  राकेट फटता है लेकिंग इसका इफेक्टिव रेंज 200 मीटर ही माना जाता है और इस दुरी पर 50 % चांस रहता है की यह धीरे चल रही टारगेट को हिट कर के बर्बाद कर देगा ! अपनी पहली 60 साल की सर्विस लाइफ में RPG-7 का इस्तेमाल कर के बहुत तरह के टैंक, अर्मोर्ड गाड़ी, बिल्डिंग, बंकर और कम उचाई पे उड़ते हुए हेलीकाप्टर को बर्बाद किया है ! ऐसा माना जाता है की RPG-7 से किसी मिसाइल डिफेन्स सिस्टम के बनस्पत  ज्यादा हेलीकाप्टर को शूट डाउन किया गया है !

 इसमें इस्तेमाल होने वाले कुछ राकेट :

  • PG-7V baseline 85 mm High Explosive Anti-Tank (HEAT) rocket जिसकी धसने(penetration power) की शक्ति  260 mm अर्मोर है!
  • PG-7VM improved 70 mm HEAT rocket इसकी धसने(penetration power) की शक्ति 300 mm अर्मोर!
  • PG-7VS is a 73 mm HEAT rocket इसकी धसने की शक्ति(penetration power) 400 mm है !
  • PG-7VS1 is a cheaper version of the PG-7VS. इसकी धसने (penetration power)की शक्ति 360 mm है !
  • PG-7VL is a larger 93 mm HEAT rocket.इसका इफेक्टिव रेंज 150 मीटर टैंक के खिलाफ तथा किसी और स्थिर टारगेट के खिलाफ 300 मीटर और इसकी धसने(penetration power) की शक्ति 500 mm है!

 6. RPG-7 के बहुत अलग अलग देशो अलग अलग टाइप्स टाइप्स भी होते है 

  • टाइप 69 चीन की एक वरिएँटहै जो की 2की 2 किलो ग्राम हल्का और 50 मिलीमीटर छोटा है !यह RPG-7D3 जिसे दो फोल्ड किया जा सकता है !
  • AirTronic USA RPG-7: यह RPG-7 का अमेरिका बिल्ड क्लोन

7. बेसिक डाटा (RPG-7 basic data)

RPG-7 basic data
RPG-7 basic data

इसके साथ ही RPG-7 राकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड  से सम्बंधित ब्लॉग पोस्ट समाप्त हुई ! उम्मीद है की आपलोगों के ए पोस्ट पसंद आएगी !इस ब्लॉग को सब्सक्राइब या फेसबुक पेज को लाइक करके हमलोगों को प्रोतोसाहित करे!

इसे भी  पढ़े :
  1. भारतीय पुलिस ड्रिल ट्रेनिंग में इस्तेमाल होने वाले परेड कमांड का हिंदी -इंग्लिश रूपांतरण
  2. ड्रिल में अच्छी पॉवर ऑफ़ कमांड कैसे दे सकते है
  3. ड्रिल का इतिहास और सावधान पोजीशन में देखनेवाली बाते
  4. VIP गार्ड ऑफ़ ऑनर के नफरी और बनावट
  5. विश्राम और आराम से इसमें देखने वाली बाते !
  6. सावधान पोजीशन से दाहिने, बाएं और पीछे मुड की करवाई
  7. आधा दाहिने मुड , आधा बाएं मुड की करवाई और उसमे देखने वाली बाते !
  8. 4 स्टेप्स में तेज चल और थम की करवाई
  9. फूट ड्रिल -धीरे चल और थम
  10. खुली लाइन और निकट लाइन चल


24 December 2021

अपराधी सुधार में प्रोबेशन और पैरोल का महत्व

पिछले ब्लॉग पोस्ट में हमने दण्ड शास्त्र के बारे में जानकारी प्राप्त और इस नई  पोस्ट में हम अपराधी सुधर जैसे पैरोल और परिवीक्षा(Parole & Probation) आदि के बारे में जानेगे ! ए पोस्ट विशेषकर ट्रेनिंग सेण्टर में लेक्चर देने वालो उस्ताद के लिए लेसन प्लान(Lesson Plan Banana) बनाने में बहुत उपयोगी साबित होगा ऐसा मेरा उम्मीद है और यह दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल के ट्रेनिंग सिलेबस के अनुसार है जो उनके प्रेसिज में दिया हुवा है ! 

इसे भी पढ़े : दण्ड शास्त्र के ऊपर लेसन प्लान 

चुकी अपराध के लिए केवल व्यक्तिगत कारण ही नहीं बल्कि परिस्थितियां भी जिम्मेदार होती है इसीलिए अपराधी को कम से कम दंड देकर सुधारने का प्रयास करना चाहिए। क्योंकि अपराध के लिए कई प्रकार की मानसिक बीमारियां व्यक्तिगत विकास और सामाजिक और समायोजन भी जिम्मेदार होता है इसलिए अपराधी को एक मानसिक रोगी मानकर उसका सुधर के  प्रयास भी करना चाहिए । 

Difference between Parole and Probation
Parole
 अपराधी का सुधार व उपचार की विधियां 

1.  परीविक्षा(Probation) : दोष सिद्ध  अपराधी के दंड को निलंबित या स्थगित करके उसे जेल के दूषित वातावरण से बचाकर समाज में रहकर सुधारने का अवसर देना होता है । 

  • अपराधी जन्म से ही पैदा नहीं होते हैं की धारणा पर आधारित है। 
  • एक उपचारात्मक कार्यक्रम जो अपराधी को सामाजिक समायोजन की सुविधा प्रदान करता है। 
  • परिवीक्षा  न्यायालय द्वारा प्रदान की जाती है! 
  • इसका मांग  करने पर न्यायालय न्यायालय परीक्षा अधिकारी से अपराधी के जन्म से लेकर अदालत तक पहुंचने तक की अवधि का पूरा अध्ययन करवाती है। 
  • परीविक्षा अधिकारी का निगरानी से रहते हुए अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों के अनुसार सदव्यवहार करने का अपराधी द्वारा वचन दिया जाता है। 

2. परीविक्षा के उद्देश्य (Aim of Probation)

  • पहली बार अपराध करने वाले अपराधियों को बाल अपराधियों को व कमजोर अपराधियों को दंड का भय दिखाकर व चेतावनी देकर सुधारना। 
  • कलंकित जीवन एवं जेल के दूषित वातावरण से छुटकारा दिलाना 
  • कम अवधि की सजा का  विकल्प है क्योंकि कम अवधी की सजा जेल का डर  समाप्त कर देती है 
  • जेल में छोटी अवधि में अपराधी का सुधार संभव नहीं होता है और कलंक  भी लग जाता है। 
  • सामाजिक परिस्थितियों में समायोजन व पुनर्वास परिवीक्षा  अधिकारी के माध्यम से सहायता देना !
  • अपराधिक न्याय प्रणाली सहयोग एवं तालमेल। 
3. परिवीक्षा  की शर्तें  (Probation ki conditions ) :
  • परिवीक्षा  अधिनियम 1958 की धारा 3 के अनुसार आईपीसी की धारा 379, 380, 381, 420 के तहत दोषी सिद्ध या  आईपीसी या किसी अन्य कानून के तहत 2 साल की अवधि से दंडित अपराधी के पहली बार दोष सिद्धि  अपराधियों को चेतावनी के बाद 
  • या उपरोक्त अधिनियम की धारा 4 के अनुसार मृत्युदंड या आजीवन कारावास एवं दंड से दंडित अपराधी के दंड की कुछ समय तक निलंबित करने के लिए परिवीक्षा  या निम्न शर्तों पर छोड़ने का प्रावधान  है:
    •  परीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट पर अदालत विचार करती है। 
    • प्रोबेशनर  को भविष्य में शब्द व्यवहार बनाए रखने के लिए बाध्य पर बांड भरना पड़ता है 
    • तथा किसी व्यक्ति की जमानत देनी पड़ती है। 
    • परिवीक्षा  अधिकारी की आज्ञा के बिना निवास स्थान नहीं बदलेगा तथा नशे आदि से दूर रहेगा।
    • परिवीक्षा अवधि के दौरान प्रोबेशनर  परिवीक्षा  अधिकारी से निरंतर संपर्क रखेगा और उसके नियंत्रण एवं निर्देश में कार्य करेगा
  • अधिनियम की धारा 5 के तहत अदालत अपराधी को परिवीक्षा  पर छोड़ते समय पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा अदा करने का हुक्म दे सकती है। 
  • धारा 9 के अनुसार यदि अपराधी परिवीक्षा  अधिकारी की शर्तों का उल्लंघन करता है तो अपराध की निर्धारित सजा का आदेश अदालत दे सकती है 
नोट: सीआरपीसी की धारा 360 व 361 में भी इसका उल्लेख किया गया है। 

4. पैरोल (Parole):जेल में संतोषजनक एवं अच्छा व्यवहार करने वाले दोषसिद्ध  अपराधी को सजा का कुछ भाग पूरा करने के बाद कुछ शर्तों के अधीन मुक्त कर देना कुछ हद तक परिवीक्षा  से मिलती-जुलती भी दी है। 

5. पैरोल की शर्तें(Parole ki condition):
  • पैरोल अधिकारी के संरक्षण में रहकर अच्छा व्यवहार करेगा वह किसी कानून का उल्लंघन नहीं करेगा।
  • पैरोल अधिकारी के संपर्क में रहेगा वह अपने बारे में सही सही सूचनाएं निरंतर देते रहेगा। 
  • पैरोल अधिकारी के आज्ञा के बिना निवास स्थान और नौकरी नहीं बदलेगा राज्य से बाहर जाएगा और ना ही विवाह करेगा। 
  • नशीली वस्तुओं व औषधियों का सेवन नहीं करेगा 
  • पैरोल  की शर्तों का उल्लंघन करने पर बकाया सजा काटने के लिए जेल भेज दिया जाता है। 
6. पैरोल के लाभ (Parole ke benefits)
  • दूसरे कैदियों को जेल में अच्छा व्यवहार करने की प्रेरणा देता है। 
  • सरकारी धन की बचत कराता है। 
  • अपराधी का परिवार टूटने से बचाता है 
  • पैरोल अधिकारी के निर्देश व नियंत्रण अपराधी को समाज में समायोजन व पुनर्वास का अवसर मिलता है।

 7परिवीक्षा  और पैरोल में अंतर (Difference between Probation and Parole) 
  • परिवीक्षा (Probation)
    •  परिवीक्षा  न्यायालय द्वारा सजा सुनाते वक्त मुक्त किया जाना। 
    • परिवीक्षा  अधिकारी द्वारा अपराधी के जन्म से लेकर सजा सुनाने तक की अवधि के दौरान के आचरण के मूल्यांकन पर आधारित है न्यायालय द्वारा स्वीकृत। 
    • परिवीक्षा  अधिनियम 1958 सीआरपीसी की धारा 360 के तहत 
    • यह सुधार का सबसे पहला कदम है। 
    • धारा 361 सीआरपीसी की रोशनी में एक अधिकार की तरह मांगा जा सकता है। 
  • पैरोल (Parole)
    • न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा का कुछ भाग जेल में बिताने के बाद मुक्त किया जाता है 
    • जेल अधिकारी द्वारा अपराधी के जेल में किए गए आचरण का मूल्यांकन के आधार पर दिया जाता है।
    •  प्रशासकीय बोर्ड या सलाहकार  बोर्ड द्वारा स्वीकृत की जाती है। 
    • जेल मैनुअल के तहत इसका विवरण दिया गया होता है। 
    • यह सुधार का आखरी कदम है।
    •  यह जेल प्रशासन का अपराधी पर एक एहसान है कि अपराधी का अधिकार है। 

8.सुधारात्मक संस्थाएं 

  • बाल अपराधियों से संबंधित संस्थाएं किशोर ,(Juvenile Home)गृह तिरस्कृत या उपेक्षित(Neglected) बच्चों के लिए(Sec 9 of J.J. Act 1986) किशोर न्यायालय अधिनियम के अंतर्गत स्थापित किया गया है 
  • विशेष गृह (Special Home) दोष सिद्बाध बाल अपराधियों के लिए(Sec 10 of J.J. Act) 
  • पर्यवेक्षण गृह (Observation Home) विचाराधीन बाल अपराधियों के लिए 
  • उपरोक्त तीनों गृहों में स्कूली शिक्षा के साथ-साथ व्यवसायिक शिक्षा व चरित्र विकास की व्यवस्था होती है।

 9. महिलाओं के लिए 
नारी निकेतन जैसे  निर्मल छाया आदि  अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम(The Immoral Traffic Prevention Act 1956) की धारा 21 के अनुसार 

10. गैर सरकारी संस्थाएं 
  • जैसे नज्योति  नशा उन्मूलन संस्था 
  • प्रयास बेसहारा व शोषित बच्चों के लिए 
  • SOS चिल्ड्रन विलेज अनाथ और अपेक्षित बच्चों के लिए
इस प्रकार से पैरोल और परिवीक्षा से  सम्बंधित  यह ब्लॉग पोस्ट समाप्त हुवा !उम्मीद है की यह  पोस्ट आप को पसंद आएगा ! अगर कोई कमेंट होतो निचे के कमेंट बॉक्स में जरुर लिखे ! इस ब्लॉग  सब्सक्राइब औत फेसबुक पर लाइक करे और हमलोगों को और अच्छा करने के लिए प्रोतोसाहित !

इन्हें भी  पढ़े :

  1. पुलिस ड्यूटी
  2. फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट में होनेवाली कुछ कॉमन गलतिया
  3. 6 कॉमन गलतिया अक्सर एक आई ओ सीन ऑफ़ क्राइम पे करता है
  4. क्राइम सीन पे सबसे पहले करनेवाले काम एक पुलिस ऑफिसर के द्वारा
  5. बीट और बीट पेट्रोलिंग क्या होता है ?एक बीट पट्रोलर का ड्यूटी
  6. पुलिस नाकाबंदी या रेड् क्या होता है ?नाकाबंदी और रेड के समय ध्यान में रखनेवाली बाते 
  7. निगरानी और शाडोविंग क्या होता है ? किसी के ऊपर निगरानी कब रखी जाती है ?
  8. अपराधिक सूचना कलेक्ट करने का स्त्रोत और सूचना कलेक्ट करने का तरीका
  9. चुनाव के दौरान पुलिस का कर्तव्य
  10. थाना इंचार्ज के चुनाव ड्यूटी सम्बंधित चेक लिस्ट

23 December 2021

दण्ड शास्त्र || Penology

पिछले ब्लॉग पोस्ट में हमने अपराध के वर्गीकरण के बारे में जानकारी प्राप्त की और इस नई ब्लॉग पोस्ट में हम दण्डशास्त्र(Penology) के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे ! इस विषय को अच्छी तरह से समझने के लिए हमने इसे छोटे छोटे शीर्षक के अंतर्गत बाँट दिया है !

1. दण्ड शास्त्र क्या है :दण्ड शास्त्र  अपराध शास्त्र का एक प्रभाग है जो अपराध के लिए दंड तथा जेलों के प्रबंधन से संबंधित है। किसी व्यक्ति को उसके अपराध या किसी कथित कार्य के लिए दंडित ठहराना अपराधी घोषित करना।

दण्ड शस्त्र के सिद्धांत
दण्ड शस्त्र 

दण्डशास्त्र अपराधियों को दंड देने से संबंधित विधिओ , सिद्धांतों एवं उनके उपचार का अध्ययन है !उपरोक्त के अलावा इसमें जेल व्यवस्था सुधारात्मक उपाय पुनर्वास व्यवस्था आदि का भी अध्ययन किया जाता है। 


2. दंड शास्त्र का क्षेत्र 

  • दंड 
  • जेल व्यवस्था 
  • सुधार व उपचार 
  • प्रवर्तित आदतन अपराधिक- दंड के बावजूद भी अपराधी का न सुधरना, 
  • अपराधिक न्याय प्रणाली सहयोग एवं तालमेल 
3. दंड शास्त्र के सिद्धांत:

  • परंपरा वादी सिद्धांत: क्योंकि व्यक्ति आनंद या सुख प्राप्त करने के लिए अपराध करता है इसीलिए उसे कष्ट या दुख पहुंचा कर अपराध से विमुख करना चाहिए ! नवपरंपरा दियो ने इसमें यह सुधार किया कि दंड का निर्धारण आयु, लिंग और मानसिक स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। 
  • प्रत्यक्ष वादी सिद्धांत: क्योंकि अपराध के लिए शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक कारण भी जिम्मेदार होते हैं इसलिए दंड का निर्धारण अपराध की अपेक्षा अपराधियों की प्रवृत्ति के अनुसार होना चाहिए। 
  • आधुनिक सिद्धांत :क्योंकि अपराधियों के लिए खुद समाज भी जिम्मेदार है इसलिए अपराधियों को सुधारने का दायित्व भी उसी का है। अपराधी को एक मानसिक रोगी समझ कर उसका सुधार एवं उपचार करना चाहिए। 
4. दंड :- राज्य द्वारा कानून के कानून विरोधी कार्यो के लिए अपराधियों को दी जाने वाली शारीरिक या मानसिक पीड़ा है 

5. दंड के उद्देश्य:

  • मानवीय व्यवहार पर नियंत्रण करने के लिए- दंड का भय परंपरावादी सिद्धांत के अनुसार 
  • अपराधी का सुधार- करवास में नैतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक व व्यवसायिक शिक्षा। अपराधी को समाज में पुनर्वास के लिए तैयार करना। 
  • सामाजिक सुरक्षा :-कारवास में होने के कारण समाज को और ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकता है।
  • प्रतिरोधआत्मक उपाय:- उन लोगों में दंड का भय पैदा करना ताकि वह अपराध न करें। 
  • क्षतिपूर्ति:- जुर्माना आदि लगाकर पीड़ित व्यक्ति को छतिपूर्ति अपराधी को दंड मिलने से पीड़ित को मानसिक संतुष्टि। 
6. दंड के प्रकार 

  • कारवास :- अपराधी को अलग रखकर समाज को हानि पहुंचाने से रोकना। दो प्रकार का होता है  साधारण व कठोर 
  • जुर्माना 
  • शहर बदर करना या तड़ीपार करना क्षेत्र से निकासी करना 
  • चेतावनी या भर्सना  न्यायालय द्वारा 
  • मृत्युदंड :-विवादास्पद मुद्दा मृत्युदंड दिया जाना चाहिए या नहीं 
7. मृत्यु दंड के तर्क 
परिशोध बुरे व्यक्ति को समाज में से हमेशा के लिए हटा देता परिशुद्ध आत्मक अनुवांशिकता का सिद्धांत 
8. मृत्यु दंड के विपक्ष में तर्क :
अमाननीय दंड सुधार विरोधी अपराधों के लिए समाज कई अपराधी के परिवार को असहाय व बेसहारा बना देता है। 

9. निष्कर्ष:- दण्ड  केवल वही दिया  जाना चाहिए जहां अपराध संदेश से परे साबित होता है! अपराध अति क्रूर व जघन्य हो तथा अपराधी के सुधरने की कोई संभावना ना हो।

10. दंड के सिद्धांत :उपरोक्त दिए गए दंड के उद्देश्य ही इसके विभिन्न सिद्धांत है 
  • परिशोधआत्मक सिद्धांत: जैसे को तैसा 
  • प्रतिरोधआत्मक सिद्धांत:- लोगों में दंड का भय पैदा होता कि वह अपराध न करें 
  • प्राश्चित  का सिद्धांत 
  • निरोधात्मक सिद्धांत :अपराधी को समाज से अलग रखकर सामाजिक सुरक्षा कारावास या मृत्युदड 
  • क्षतिपूर्ति का सिद्धांत 
  • सुधारात्मक सिद्धांत अपराधों के लिए समाज उत्तरदाई इसलिए अपराधी को एक मानसिक रोगी समझकर उसका उपचार करके सुधारने पर बल।
इस प्रकार से हम जाने की दण्ड शास्त्र  और उसके सिद्धांत क्या क्या होते है तथा दण्ड क्यों दिया जाता है !इस प्रकार से दण्ड शास्त्र से  सम्बंधित  यह ब्लॉग पोस्ट समाप्त हुवा !उम्मीद है की यह  पोस्ट आप को पसंद आएगा ! अगर कोई कमेंट होतो निचे के कमेंट बॉक्स में जरुर लिखे ! इस ब्लॉग  सब्सक्राइब औत फेसबुक पर लाइक करे और हमलोगों को और अच्छा करने के लिए प्रोतोसाहित !

इन्हें भी  पढ़े :

  1. पुलिस ड्यूटी
  2. फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट में होनेवाली कुछ कॉमन गलतिया
  3. 6 कॉमन गलतिया अक्सर एक आई ओ सीन ऑफ़ क्राइम पे करता है
  4. क्राइम सीन पे सबसे पहले करनेवाले काम एक पुलिस ऑफिसर के द्वारा
  5. बीट और बीट पेट्रोलिंग क्या होता है ?एक बीट पट्रोलर का ड्यूटी
  6. पुलिस नाकाबंदी या रेड् क्या होता है ?नाकाबंदी और रेड के समय ध्यान में रखनेवाली बाते 
  7. निगरानी और शाडोविंग क्या होता है ? किसी के ऊपर निगरानी कब रखी जाती है ?
  8. अपराधिक सूचना कलेक्ट करने का स्त्रोत और सूचना कलेक्ट करने का तरीका
  9. चुनाव के दौरान पुलिस का कर्तव्य
  10. थाना इंचार्ज के चुनाव ड्यूटी सम्बंधित चेक लिस्ट


22 December 2021

अपराध के वर्गीकरण || Classification of crime

पिछले ब्लॉग पोस्ट में हमने अपराध शास्त्र के सिद्धांत के बारे में जानकारी प्राप्त की और अब इस छोटे से  ब्लॉग पोस्ट में हम अपराध के वर्गीकरण के बारे में जानेगे की अपराध को कितने वर्गों में वर्गीकरण किया जा सकता है !

इस विषय को अच्छी तरह से समझने के लिए हम ने इस पोस्ट को निम्न शीर्ष में बाँट दिया है:

अपराध शास्त्र
अपराध शास्त्र 

1. अपराध की परिभाषाएं: अपराध शब्द जितना प्रचलित है उतना ही मुश्किल है इसकी परिभाषा देना क्योंकि इस परिवर्तनशील भौतिक युग में प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन होते रहते हैं। जिसके कारण अपराध की परिभाषा में भी फेरबदल समयानुसार अवश्यंभावी है फिर भी कुछ प्रमुख अपराध शास्त्रियों द्वारा की गई कुछ परिभाषा ओं का अध्ययन करते हैं। 

कैनी के अनुसार : अपराध उन अवैधानिक कार्यों को कहते हैं जिन के बदले में दंड दिया जाता है और वह क्षम्य नहीं होते हैं। अगर क्षम्य नहीं होते भी हैं तो राज्य  के अलावा अन्य किसी को भी क्षमा प्रदान करने का अधिकार नहीं होता है। 

मिलर के अनुसार :अपराध वो कृत या अकृत उल्लंघन कार्य हैं जिनको की विधि समावेशित अथवा निर्देशित करती है और उन दोनों को सरकार अपने नाम से कार्यवाही  करके दंडित करती है। 

बसंती लाल बाबेल के अनुसार: तत्समय प्रवृत  विधि के अंतर्गत ऐसा कोई भी कार्य  करना जिसे नहीं करने के लिए वह व्यक्ति आबध्य  है अथवा ऐसे कार्य के करने से प्रविरत रहना या लोप करना  जिसके करने के लिए आबध्य  है अपराध है दोनों ही दशाओं में यह दंडनीय है!

अपराध का वर्गीकरण(Classification of Crime): पाश्चात्य अपराध शास्त्रियों का वर्गीकरण अलग आधारों पर किया है जो भारतीय विधि से मेल नहीं खाता है। भारतीय विधि में अपराध का वर्गीकरण प्रमुख तीन आधारों पर किया गया है। 

संख्यिक्यआधार पर (Pre Classical Theory)

  • व्यक्ति विरुद्ध अपराध (Crime against Person)
  • संपत्ति के विरुद्ध अपराध (Crime against Property)
  • राज्य के विरुद्ध अपराध (Crime against State)
  • व्यवस्था के विरुद्ध अपराध (Crime against Order)
  • न्याय के विरुद्ध अपराध (Crime against Justice)
भारतीय दंड संहिता के अनुसार अपराध का वर्गीकरण (Classification on the basis of IPC)

  • मानव शरीर के विरुद्ध अपराध 
  • संपत्ति के विरुद्ध अपराध 
  • लेख से संबंधित अपराध 
  • मानव मस्तिक को प्रभावित करने वाले अपराध 
  • लोग शांति के विरुद्ध अपराध 
  • राज्य के विरुद्ध अपराध 
  • शासकीय सेवको द्वारा अपराध। 
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के धारा पर अपराधियों का वर्गीकरण 

साधारण अपराध(Non Cognizable offence) 

  • असंगेय अपराध 
  • समन मामलों से संबंधित अपराध 
  • जमानती अपराध 
गंभीर अपराध (Cognizable Offence)

  • संगेय अपराध 
  • वारंट मामलों से संबंधित अपराध 
  • अजमानती अपराध 
संक्षेप: जैसे के दिल्ली पुलिस ट्रेनिंग प्रेसिज में बताया गया है उसके अनुसार उपरोक्त  संख्यिक्य, प्रवृत्ति व प्रक्रिया के आधार पर वर्गीकरण पर अगर इस संक्षेप में वह दिखाई प्रतीत होता है की अपराध केवल तीन प्रकार के होते हैं एक मानव के विरुद्ध, दूसरा सम्पति  के विरूद्ध और तीसरा राज्य  के विरोध तो अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि उपरोक्त वर्गीकरण से  सभी वर्ग के अपराधो को वर्गीकरण किया जा सकता है  ।

इस प्रकार से आपराध के वर्गीकरण से  सम्बंधित  यह ब्लॉग पोस्ट समाप्त हुवा !उम्मीद है की यह  पोस्ट आप को पसंद आएगा ! अगर कोई कमेंट होतो निचे के कमेंट बॉक्स में जरुर लिखे ! इस ब्लॉग  सब्सक्राइब औत फेसबुक पर लाइक करे और हमलोगों को और अच्छा करने के लिए प्रोतोसाहित !

इन्हें भी  पढ़े :

  1. पुलिस ड्यूटी
  2. फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट में होनेवाली कुछ कॉमन गलतिया
  3. 6 कॉमन गलतिया अक्सर एक आई ओ सीन ऑफ़ क्राइम पे करता है
  4. क्राइम सीन पे सबसे पहले करनेवाले काम एक पुलिस ऑफिसर के द्वारा
  5. बीट और बीट पेट्रोलिंग क्या होता है ?एक बीट पट्रोलर का ड्यूटी
  6. पुलिस नाकाबंदी या रेड् क्या होता है ?नाकाबंदी और रेड के समय ध्यान में रखनेवाली बाते 
  7. निगरानी और शाडोविंग क्या होता है ? किसी के ऊपर निगरानी कब रखी जाती है ?
  8. अपराधिक सूचना कलेक्ट करने का स्त्रोत और सूचना कलेक्ट करने का तरीका
  9. चुनाव के दौरान पुलिस का कर्तव्य
  10. थाना इंचार्ज के चुनाव ड्यूटी सम्बंधित चेक लिस्ट

21 December 2021

आपराध शास्त्र के सिद्धांत

 पिछले ब्लॉग पोस्ट में हमने अपराध शास्त्र और उसकी पुलिस के लिए अहमियत के बरेर में जानकारी प्राप्त किये थे और अब इस पोस्ट में हम उसी श्रृखला को आगे बढ़ाते हुए यह जानेगे की अपराध शास्त्र के सिद्धांत क्या होता है(Theory of criminology) और ओ कितने प्रकार के होते है !

(अ) आपराध शस्त्र की परिभाषा बहुत से समाजशास्त्रियो ने दिए है जिन्होंने अपने परिभाषा के द्वारा ए बताया है की अपराध शास्त्र क्या होता है !जिसमे से कुछ निम्न प्रकार से है :

Apradh shsastr
Apradh shsastr 

  • टैफ्ट: टैफ्ट के अनुसार अपराध शास्त्र वह अध्ययन है  जिसक विषय वस्तु में अपराध की व्याख्या और उसके निवारण के साथ अपराधियों एवं बाल अपराधियों के दंड अथवा उपचार शामिल है। 
  • डा. बसंती लाल बाबेल के अनुसार अपराध शास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जिसमें अपराध एवं अपराधी बनने के कारण उनके उपचार एवं निवारण के तरीकों तथा अपराध से अपराधी तक पहुंचने की विधि का अध्ययन किया जाता है। 

(ब) अपराध शास्त्र का महत्व :

पुलिस के प्रमुख का कार्य नागरिकों के जान व माल की रक्षा करना कानून व व्यवस्था बनाए रखना अपराधों की रोकथाम करना तथा अपराधियों को न्यायालय के समक्ष ले जाकर सजा दिलवाना आदि! इन  सभी कार्य अपराध शास्त्र के ज्ञान के बिना असंभव है।

(क) अपराध शास्त्र के सिद्धांत 

1. प्री क्लासिकल सिद्धांत(Pre Classical Theory)

प्रमुख मान्यता: इस सिद्धांत  को मनाने वाले के अनुसार अपराध के लिए भूत प्रेत उत्तरदाई होते हैं। 

प्रमुख समर्थक: इस सिद्धांत के समर्थक  अगस्त काम्टे 

2. शास्त्रीय सिद्धांत(Classical Theory):

प्रमुख मान्यता : इस सिद्धांत मानने वाले का कहना है की  स्वतंत्र इच्छा अपराध के लिए उत्तरदाई है। 

प्रमुख समर्थक: जेरेमी बेंथम, सीजर बेकेरिया, आदि!

3. नव  शास्त्रीय सिद्धांत (New Classical Theory)

प्रमुख मान्यता: इस सिद्धांत मानने वाले का कहना है की स्वतंत्र इच्छा अपराध के लिए उत्तरदाई है उसके साथ परंतु संबंध व्यवस्था उचित नहीं है।

प्रमुख समर्थक: रोजी, जोली, टैफ्ट यदि 

4.प्रारूप वादी सिद्धांत(Topological Theory): इसकी प्रमुख तीन विचारधाराएं हैं !

(i) जैविक सिद्धांत(Biological Theory )

प्रमुख मान्यताएं: इस सिद्धांत मानने वाले का कहना है की विशेष शारीरिक संरचनाएं अपराध के लिए उत्तरदाई है। 

प्रमुख समर्थक: लंब्रोसो। 

(ii) मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत(Phycho Analytical Theory )

प्रमुख मान्यताएं: इस सिद्धांत मानने वाले का कहना है की संवेगात्मक अस्थिरता अपराध के लिए उत्तरदाई है। प्रमुख समर्थक: सिमंड फ्राइड ,अडलेर, कलिन्जुंग आदि । 

(iii)मानसिक प्रशिक्षण सिद्धांत(Mental Testers Theory)

प्रमुख मान्यताएं:इस सिद्धांत मानने वाले का कहना है की मानसिक दुर्बलता अपराध के लिए उत्तरदाई है। 

प्रमुख समर्थक: डॉ. गोलार्ड

5. वातावरणीय सिद्धांत(Cartographic Theory) :इसकी भी तीन विचारधाराएं हैं  जो निम्न है 

(i) भौगोलिक सिद्धांत (Ecological Theory)

प्रमुख मान्यताएं:इस सिद्धांत मानने वाले का कहना है की भौगोलिक परिस्थितियां अपराध के लिए उत्तरदाई है।

प्रमुख समर्थक: क्वेटलेट, माउंटेसकू आदि 

(ii) समाजवादी सिद्धांत (Socialistic Theory)

प्रमुख मान्यताएं:इस सिद्धांत मानने वाले का कहना है की आर्थिक असमानता अपराध के लिए उत्तरदाई है। 

प्रमुख समर्थक: मार्क्स , एनिल   आदि 

(iii) समाजशास्त्रीय सिद्धांत(Sociological Theory) 

प्रमुख मान्यताएं:इस सिद्धांत मानने वाले का कहना है की सामाजिक परिस्थितियां अपराध के लिए उत्तरदाई है। प्रमुख समर्थक:  सेलेक्ट ,अग्नि आदि। 

6.विविध कारकवादी सिद्धांत(Multifactor Theory) 

प्रमुख मान्यताएं:इस सिद्धांत मानने वाले का कहना है की कई कारण मिलकर अपराध के लिए उत्तरदाई होते हैं। 

प्रमुख समर्थक:सिसिलावार्ट 

इस प्रकार से हमने देखा की अलग अलग समाज शास्त्रियो  ने अलग अलग समय पे अपराध शसस्त्र का अलग अलग परिभाषाये दी है और सबकी अपनी अपनी मान्यताये और कारन थे अपराध के बारे में और यह देखा गया है की इनलोगों में अपराध का कारन के ऊपर एकमत नहीं थे !

इस प्रकार से आपराध शास्त्र के सिद्धांत  से सम्बंधित  यह ब्लॉग पोस्ट समाप्त हुवा !उम्मीद है की यह  पोस्ट आप को पसंद आएगा ! अगर कोई कमेंट होतो निचे के कमेंट बॉक्स में जरुर लिखे ! इस ब्लॉग  सब्सक्राइब औत फेसबुक पर लाइक करे और हमलोगों को और अच्छा करने के लिए प्रोतोसाहित !

इन्हें भी  पढ़े :

  1. पुलिस ड्यूटी
  2. फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट में होनेवाली कुछ कॉमन गलतिया
  3. 6 कॉमन गलतिया अक्सर एक आई ओ सीन ऑफ़ क्राइम पे करता है
  4. क्राइम सीन पे सबसे पहले करनेवाले काम एक पुलिस ऑफिसर के द्वारा
  5. बीट और बीट पेट्रोलिंग क्या होता है ?एक बीट पट्रोलर का ड्यूटी
  6. पुलिस नाकाबंदी या रेड् क्या होता है ?नाकाबंदी और रेड के समय ध्यान में रखनेवाली बाते 
  7. निगरानी और शाडोविंग क्या होता है ? किसी के ऊपर निगरानी कब रखी जाती है ?
  8. अपराधिक सूचना कलेक्ट करने का स्त्रोत और सूचना कलेक्ट करने का तरीका
  9. चुनाव के दौरान पुलिस का कर्तव्य
  10. थाना इंचार्ज के चुनाव ड्यूटी सम्बंधित चेक लिस्ट

20 December 2021

आपराध शास्त्र तथा अपराध शास्त्र का पुलिस के लिए महत्व

पिछले ब्लॉग पोस्ट में हमने हथकड़ी तथा एस्कॉर्ट गार्ड के बारे में जानकारी प्राप्त की और अब इस ब्लॉग पोस्ट में हम जानेगे की पुलिस के लिए अपराध शास्त्र की जानकारी होना क्यों जरुरी है(Police ke lie Apradh Shastr ka Mahatw) ! तो इस विषय को हम निम्न शीर्ष के अंतर्गत जानेगे :

अपराध शास्त्र
अपराध शास्त्र

1.अपराध शास्त्र क्या है(Apradh shastr Kya hai) :अपराध शास्त्र की वह शाखा है जिसमें अपराध एवं अपराधी बनने के कारणों उनके उपचार एवं निवारण के तरीकों का अध्ययन किया जाता है। 

2. अपराध शास्त्र का क्षेत्र(Apradh shastr ka area)

  • अपराध क्या है?
  •  अपराध एवं अपराधिक व्यवहार के क्या कारण हैं ?
  • अपराधों का निवारण कैसे किया जा सकता है वर्तमान में इसमें दंड के साथ-साथ सुधारवादी दृष्टिकोण पर विशेष बल दिया जाता है। 

3. अपराध की परिभाषा(Apradh ki Paribhasha): किसी समय में लागू किसी कानून के अंतर्गत जिस कार्य को करने की मनाही है उसे करना या जिस कार्य के करने के लिए व्यक्ति अबैद्ध  है उसे ना करना अपराध है। दोनों ही दशाओं में यह दंडनीय है। 

4.अपराध के कारक: अपराध के लिए कोई एक कारण अकेले जिम्मेदार नहीं होता बल्कि इसके पीछे कई कारण मिलकर जिम्मेदार होते हैं। 

(a)जैविक कारक(Biological Factors) :

  • अनुवांशिकता माता-पिता तथा अन्य पूर्वजों से हस्तांतरित होने वाले गुण दोष। 
  • अंत स्रावी ग्रंथियों में दोष
  • शारीरिक रचना 

(b).मनोवैज्ञानिक कारक(Psychological Factors) :

  • मानसिक दुर्बलता सही व गलत में भेद करने में अक्षम
  • मानसिक विकार: उत्साह मनोवृति  मनोग्रस्त बाध्यता  प्रतिक्रियाएं(Obsessive Compulsive Reactions) कलैपटॉपमेंमियां, पायरोमानिया आसयोजन व्यक्तित्व विकास सामाजिकता लैंगिक विचलन नशे का आदी होना। 
  • अज्ञानता: नैतिक शिक्षा का अभाव अपराध व कानूनों के बारे में जानकारी ना होना कानूनों का भय ना होना पीड़ित व्यक्ति द्वारा सुरक्षा के उपाय ना करना व संभावित अपराधियों को आकर्षित करना। 
(c).आर्थिक कारक(Economic Factors): 

  • बेरोजगारी व गरीबी 
  • भौतिकवाद 
  • धन इकट्ठा करने की लालसा। धन की असमान वितरण 

(d)सामाजिक कारक (Social Factors)

  • खराब परिवारिक बातावरण 
  •  वर्ग संघर्ष अमीर व गरीब के बीच या जातियों के बीच। 
  • समाजिक प्रतियोगिता। 
  • अंधविश्वास। 
  • बुरी संगत व स्लम बस्तियों जैसा खराब बताबरण। 

(e)राजनैतिक कारक(Political Factors) 

  • अपराधिक राजनीतिक गठजोड़। 
  • राजनीतिक प्रतिद्वंदता 
  • अपराधिक न्याय प्रणाली को मजबूत करने की इच्छा में कमी। 
  • विधि पालक संस्थाओं के कार्यों में राजनीतिक नेताओं का हस्तक्षेप  । 

5.अपराधियों का निवारण 

दंड :दंड राज्य द्वारा कानूनी विरोधी कार्यो के लिए अपराधी को दी जाने वाली पीड़ा या कष्ट है। 

आधुनिक धारणा क्योंकि अपराध के लिए केवल व्यक्तिगत कारण ही नहीं बल्कि परिस्थितियां भी जिम्मेदार होती है इसीलिए अपराध को कम से कम दंड देकर सुधारने का प्रयास करना चाहिए। 

6.दंड का उद्देश्य :

  • मानवीय व्यवहार पर नियंत्रण करने के लिए दंड का भय। 
  • अपराधी का सुधार कारावास में नैतिक आध्यात्मिक व व्यवसायिक शिक्षा। अपराधी को समाज में पुनर्वास के लिए तैयार रखना। 
  • सामाजिक सुरक्षा कारावास में होने के कारण समाज को और ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाता सकता।
  • प्रतिरोध आत्मक उपाय उन लोगों में दंड का भय पैदा करना ताकि वे अपराध ना करें। 
  • क्षतिपूर्ति जुर्माना आदि लगाकर पीड़ित व्यक्तियों को क्षतिपूर्ति अपराधी को दंड मिलने से पीड़ित को मानसिक संतुष्टि। 

7.अपराधियों को सुधार एवं उपचार :चुकी अपराध के लिए कई प्रकार की मानसिक बीमारियां, व्यक्तित्व विकार व सामाजिक समायोजन भी जिम्मेदार होते हैं। इसीलिए अपराधियों को एक मानसिक रोगी मानकर उनका उपचार करना चाहिए। 

  • परिवीक्षा (Probations): दोषसिद्ध  अपराधी के दंड को निलंबित या स्थगित करके उसे जेल में दूषित वातावरण से बचाकर समाज में रहकर सुधारने का अवसर देना। 
  • पैरोल(Parole):जेल में संतोषजनक एवं अच्छा व्यवहार करने वाले दोषसिद्ध  अपराधी को सजा का कुछ भाग पूरा करने के बाद कुछ शर्तों के अधीन मुक्त कर देना ! जेल मैनुअल में प्रधान।

8. सुधारात्मक संस्थाएं 

  • बाल अपराधियों से संबंधित संस्थाएं :किशोर गृह, विशेष गृह ,प्रवेक्षण गृह  । किशोर न्याय अधिनियम 1986 के तहत स्कूली शिक्षा के साथ-साथ व्यवसायिक शिक्षा व चरित्र विकास की व्यवस्था। 
  • महिलाओं के लिए नारी निकेतन :निर्मल छाया ,अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की धारा 21 के अनुसार 
  • गैर सरकारी संस्थाओं ज्योति प्रयास। 
9. अन्य उपाय:

  • घर का स्वच्छ स्वस्थ वातावरण। 
  • अच्छा स्कूल अच्छी संगत नैतिक शिक्षा व कानूनों के बारे में जानकारी। 
  • स्वस्थ मनोरंजन। 
  • मानसिक बीमारियों का इलाज। 
  • आर्थिक सहायता के लिए प्रयास 
  • संप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के प्रयास 
  • परामर्श व मार्गदर्शन। 
  • दीवानी व फौजदारी सभी कानूनों को का ठीक प्रकार लागू करना। 
  • अपराधिक न्याय प्रणाली को मजबूत करने का प्रयास। 
10.पुलिस कर्मियों के लिए अपराध शास्त्र का महत्व :

  • अपराधियों के व्यवहार को समझने में सहायक। 
  • अपराध का मकसद ढूंढने में सहायक। 
  • अपराध के संभावित पीड़ितों को अनुमान लगाने में सहायक। 
  • किसी क्षेत्र विशेष के अपराध जन्म कारकों को समझ कर उनके रोकथाम के उपाय अपनाने में सहायक
  • अपराधियों के प्रति पुलिसकर्मियों के दृष्टिकोण से उचित विकास में सहायक। 
  • अपराध के पीड़ितों के साथ उचित व्यवहार करने में मार्ग मार्गदर्शक 
इस प्रकार से आपराध शास्त्र तथा अपराध शास्त्र का पुलिस के लिए महत्व  से सम्बंधित  यह ब्लॉग पोस्ट समाप्त हुवा !उम्मीद है की यह  पोस्ट आप को पसंद आएगा ! अगर कोई कमेंट होतो निचे के कमेंट बॉक्स में जरुर लिखे ! इस ब्लॉग  सब्सक्राइब औत फेसबुक पर लाइक करे और हमलोगों को और अच्छा करने के लिए प्रोतोसाहित !
इन्हें भी  पढ़े :
  1. पुलिस ड्यूटी
  2. फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट में होनेवाली कुछ कॉमन गलतिया
  3. 6 कॉमन गलतिया अक्सर एक आई ओ सीन ऑफ़ क्राइम पे करता है
  4. क्राइम सीन पे सबसे पहले करनेवाले काम एक पुलिस ऑफिसर के द्वारा
  5. बीट और बीट पेट्रोलिंग क्या होता है ?एक बीट पट्रोलर का ड्यूटी
  6. पुलिस नाकाबंदी या रेड् क्या होता है ?नाकाबंदी और रेड के समय ध्यान में रखनेवाली बाते 
  7. निगरानी और शाडोविंग क्या होता है ? किसी के ऊपर निगरानी कब रखी जाती है ?
  8. अपराधिक सूचना कलेक्ट करने का स्त्रोत और सूचना कलेक्ट करने का तरीका
  9. चुनाव के दौरान पुलिस का कर्तव्य
  10. थाना इंचार्ज के चुनाव ड्यूटी सम्बंधित चेक लिस्ट

Add